¶°° बुजर्गो का समान हमारा परम कर्तव्य °°¶ √
जय श्रीराम।।
आज की बात-"बुजुर्गो का सम्मान करो"-मित्रो,कोई भी बूढ़ा होना नही चाहता पर बुढ़ापा सभी के आता है,ये तो मानव जीवन की सतत् प्रक्रिया है,जीवन चक्र है जो चलता रहता है,जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है जिसका सामना सभी को करना है,ये कब किसी को आ जाये पता ही नही चलता और न ही इस पर किसी का वश चलता।
मित्रो,पहले सयुक्त परिवार होते थे,सभी एक साथ एक ही जगह पर रहते,आवश्यकताए भी सिमित होती थी,परिवार के मुखिया दादाजी होते,दादाजी का एकछत्र राज चलता था,घर का सारा मैनेजमेंट बुजुर्ग ही करते थे,बेटे कमाते,बहुयें घर का काम करती दादी आंतरिक व्यवस्था संभालती,घर ही क्या दादी के जिम्मे तो पूरा मोहल्ला होता था,बास-गुवाड़ी में आणा-टूणा,जनम-परण होता ही रहता सभी को राय मशविरा दादी ही देती।सगाई करने का काम दादाजी के ही जिम्मे होता,आज भी कहावत है"दादा की पेठ सु पोता परणीज ज्याव"ब्याह शादी में गीत गाने में अग्रेसर दादिया ही होती,गीत दादी ही "गीरती"सब पीछे पीछे गाती,गीतों का अथाह भंडार होता था दादी के पास।दादाजी की "माठ"हुवा करती थी,घर में जब प्रवेस करते तब सब की नेतागिरी बन्द हो जाती।"दादोजी आयगा"बिना कहे ही चूल्हे पर डेकची चढ़ जाती,अदरक,काळी मिर्च दाल कर चाय बनती,दादाजी कभी भी चाय अकेले नही पीते एक आध हेत व्यवहारी साथ ही होता।
मित्रो,ये बात में आम घर की लिख रहा हूँ,हर घर में बुजुर्गो की सबसे ज्यादा इज्जत होती थी,अब सयुक्त परिवार देखने को कम ही मिलते है,एकल परिवार हो गए,हम दो,हमारे दो का सर्वभौमिक सिद्धान्त लागु हो गया,एक पिता की चार संताने चारो अलग अलग कोई कंहा तो कोई कहा....माँ-बाप या तो अकेले रहते है या किसी एक बेटे के पास..दादाजी वर्ग के बेहाल हो रहे है।पोते भी कॉन्वेंट स्कूलो में पढ़ते है,अब किस को कन्धे पर बैठा कर मेला दिखाने जाये,महानगरो में रहने वाले पोता पोती एक आध दिनों के लिए आते है तो उनको भी दादाजी के पास बैठने के लिए समय नही....
मित्रो,बुजुर्गो ने बहुत कष्ट उठा कर हम लोगो को योग्य बनाया,आज हम लोग जो कुछ भी है,अपने माता-पिता,दादा-दादी के कारण है।हमको अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया,बोलना सिखाया,अभावो में रह कर भी पढ़ाया लिखाया,जब उनको सहारे की जरुरत हो तो हमे दूर नही होना चाहिये।माता-पिता का ऋण हम किसी भी प्रकार से नही चूका सकते।आजकल हम देखते है की बुजुर्गो के मान सम्मान में दिनों दिन कमी आ रही है,हर कोई इनसे किनारा करता है सोचते है कोई काम ओढ़ा देंगे।आजकल के युवा तो बुजुर्गो के सामने जर्दा,गुटका खाते है,बीड़ी सिगरेट पीते है।कई कई परिवारो में तो मैने देखा है की बेचारा बाप तो "राम गाय"और बेटा शराब के नशे में धुत्त होकर घर आये।बाप की बात मानना तो दूर की बात पूरे गांव में बाप की इज्जत ख़राब करते है।
मित्रो,बुजुर्ग लोग अनुभवी होते है,इन्होंने जमाना देखा है,विपरीत परिस्थितियों में काम किया है,हमको इनका आदर करना चाहिये।गाँवो में तो हम पुरे गांव को ही एक परिवार समझते है,चाहे किसी जाति समाज का हो हम उनको
काकाजी,बाबाजी,दादाजी ही कहते है,इनके मान सम्मान में कोई कमी नही आनी चाहिये।मैने देखा है की कई बुजुर्ग चबूतरे पर बैठे रहते है,सामने से कोई अनजान युवा जाता है तो उसको जरूर पूछते है"कुण को है भाया"पर आजकल वाले बहुत कम ही जबाब देते है,एक आध कोई बताता है तो पापा का नाम बताता है,जिसको वो बुजुर्ग सज्जन नही जानते,"कुण को पोतो है "तब जबाब देने वाला चुप दादाजी के नाम का इनको पता नही....बड़ी विकट समस्या आ रही है।बसो में बुजुर्ग खड़े रहते है,छोरे मटरगस्ती करते आते है,दादाजी को सीट तो मत दो पर काण-कायदा तो रखो।
मित्रो,आज के खण्डहर कभी बुलंदियों पर हुवा करते थे,बुजुर्गो के कारन ही हमारा अस्तित्व है।हमको भी बूढ़ा होना है।हमको जब बुजुर्गो की सेवा,मान सम्मान करते नई पीढ़ी देखेगी तभी हमारा बुढ़ापे में मान सम्मान होगा।बुढ़ापे में शारिरिक कमजोरी आना आम बात है,आखो से कम दिखाई देंना,ऊँचा सुनना,चलने फिरने में दिक्कत होना आम बात है।हमे इनका सहयोग करना चाहिये।हमारे समाज में सेवा का भाव तो दिनों दिन कम होता जा रहा है और दिखावा बढ़ रहा है।जीते जी माँ-बाप को पानी के लिए नही पूछते,मरने के बाद बारह दिनों पर सात प्रकार की मिठाइया बनाते है।जीवन में तो कभी माँ-बाप के प्रति श्रद्धा नही रखी और मरने के बाद आई साल श्राद्ध पर ब्राह्मण भोज करते है।ये दिखावा नही तो और क्या है?जिन्होंने माता-पिता,बुजुर्गो का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया उसको किसी दूसरे के आशीर्वाद या मेहरवानी की जरुरत ही नही है।
मित्रो,लिखने को तो बहुत कुछ है,पर आज के लिए बस इतना ही।मैने किसी व्यक्ति विशेष को इंगित करके नही लिखा है,समाज में जो देखता हूँ,महसूस करता हु वो ही लिखा है।आप भी अपनी भावनाये जरूर व्यक्त करें।आपके विचारो का स्वागत है।
सानदार👌👌👌👌
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