मां #Mothers_Day

राम राम सा...
आज की बात-आज प्रिंट एवम सोसल मीडिया के जरिये ज्ञात हुवा की"मदर्स डे" है यानी मातृ दिवस....356 दिनों में एक दिन माँ के नाम...मैं न तो इसका समर्थन कर रहा हु एवम न हो विरोध....समर्थन तो इसलिये नही करता कि हम सनातन धर्म के अनुयायी है जिसमे"मातृ देवो भव"अर्थार्त माँ को देवतुल्य माना गया है, माँ से बढ़कर दुनिया मे कोई नही है, गुरु को भगवान से बढ़कर माना गया है परंतु हम सभी की प्रथम गुरु माँ ही होती है,चाहे हम कितने ही बड़े वैज्ञानिक,इंजीनियर,डॉक्टर,वकील,उद्योगपति क्यो न बन जाये,चलना-फिरना,बोलना माँ ने ही सिखाया है,माँ का अमृत के समान दूध पीकर हम बड़े हुए है,माँ के दूध से ही हमे संस्कार मिलते है।हमारे धर्मग्रन्थो में माँ का स्थान  सर्वोच्य है,माँ के आंचल की छांव में सभी सुख एवम माँ के पैरों के नीचे स्वर्ग है।संसार मे केवल सच्चा रिश्ता केवल माँ का ही होता है, माँ शब्द सीधा हृदय से स्फुटित हो कि
ता है।माँ की महिमा अनन्त है जिस पर महाकाव्य लिखा जा सकता है,माँ के समान दुनिया मे अन्य कोई हो ही नही सकता।इसलिये माँ के महत्व एवम सम्मान के लिये केवल एक दिन....हमारे देश मे तो माँ नित्य प्रति पूजनीय,वंदनीय है।पाश्चात्य संस्कृति के लोग जो जन्म के पश्चात माँ से विमुख रहते है, उनके लिये यह दिन महत्व का होता है जिससे वो एक दिन अपनी माँ को याद कर ले,उसके साथ फोटो खिंचवा ले,विदेश में खास कर आंग्लभाषी देशों में तो माँ और बाप में अंतर का ही पता नही चलता कि इनमें कौनसी तो माँ है और कौन से पिता....हमारे यहां तो माँ का व्यक्तित्व ही अलग होता है।क्या हम माँ के सम्मान के लिये केवल एक दिन ही तय करेंगे....
       इस दिवस के विरोध में मैं इसलिये नही हु,की अपने धर्म मे भी ऐसे व्यक्ति है जो अर्ध अंग्रेजियत जीवन जी रहे है, माँ-पिताजी से दूर रहते है कम से कम एक दिन के लिये ही सही उनके प्रति जैसी भी हो श्रद्धा तो व्यक्त करते है।
          मित्रो,माँ के प्रति श्रद्धा एवम सम्मान जितना भी व्यक्त करें वो कम है, हम सभी ऋणों से उऋण हो सकते है पर मातृऋण से मुक्त नही हो सकते।वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम अनुज लक्ष्मण से कहते है"अपि स्वर्गमयी लंका न में लक्ष्मण रोचते,
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।
     अर्थार्त हे लक्ष्मण!यधपि यह लंका सोने की बनी हुई है,पर इसमें मेरी कोई रुचि नही है, क्योकि जननी ओर जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
      माँ का कितना बड़ा स्थान है हमारे संस्कारों में,माँ के दूध की लाज रखने के लिये पुत्र अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है, वीर प्रसूता माता भी अपने पुत्र को यही कहती थी कि मेरे दूध को मत लजाना....
        माँ के व्यक्तिव एवम कृतित्व को एक दिन की सीमा में नही बांधा जा सकता।पर सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि कलियुग के प्रभाव में आकर आजकल कुछ लोग माँ बाप का तिरस्कार कर रहे है,माँ के पैरों के नीचे स्वर्ग मानने वाले देश मे वृद्धाश्रम खुले हुये है, ओल्ड एज होम चल रहे है जिनमे माता-पिता रहते है, कई कलियुगी कुपुत्र तो घर से भी निकाल देते है जिस कारण माँ-बाप को दर दर को ठोकरें खानी पड़ती है, कई बार सोसल मीडिया पर वीडियो में देखते है कि विदेशों के कमाने वालो के माता पिता वृद्धाश्रमों में रहते है।जमाना बदल रहा है, अब माँ-बाप के सेवा बहुत कठिन कार्य है, अब ऐसे पुत्र बिरले ही मिलेंगे जो माँ बाप के पैर दबाते हो,अंतिम समय सिरहाने ही खड़े रहते हो,आर्थिक युग है, ऐसा करना सम्भव भी नही है।
         माता-पिता का सभी सम्मान करें।माँ का क्या महत्व है यह माँ के दुनियां से चले जाने के बाद पता चलता है, दुनियां में अपना कोई होता है तो वो माँ होती है।

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