जो बीत गया सो गया The perfect time management

राम राम सा।।
आज की बात-"बीती ताहि बिसारिये,आगे की सुध लेय"-मित्रो,जो बीत गया सो बीत गया,हमे आगे क्या करना है उस पर विचार करना चाहिये।कई लोग भूत काल की बातो में ही उलझे रहते है,चिंतन नही चिंता करते है,चिंतन से सही समाधान मिल जाता है और चिंता से केवल मात्र तनाव बढ़ता है।चिंता किसी करना किसी समस्या का समाधान नही है,चिंता तो समस्या ज्यादा बढ़ाती है,भूतकाल में की गई गलतियों से सीखना चाहिए ताकि भविष्य में उनकी पुनरावर्ती नही हो,जो व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखता है,आत्म सुधार करता है उसका भविष्य उज्ज्वल होता है।जो गलती पर गलती करता है उसमे सुधार की कोई गुंजाईश नही होती।गाँवो में लोगो के पीछे रहने का एक सबसे बड़ा कारन यह भी है की लोग चिंता फ़िक्र में ही अपना अमूल्य समय जाया करते है।जो होना है सो होकर रहेगा,विधि के विधान को कोई नही टाल सकता,अपने दुःख को हर जगह प्रगट करने से कोई लाभ नही मिलता,एक कहावत है"अंधे के आगे रोना,अपने दीदे खोना"जिसके खुद के पास सामर्थ्य नही है वो दूसरो की क्या मदद करेगा,दो महिलाये एक जगह होने पर अपने अतीत के दुखो पर ही चर्चा करेगी,या दूसरो की आलोचना...इन्ही बातो में समय गुजरता है।जो अपने भविष्य के प्रति जागरूक रहता है उसे सफलता अवश्य मिलती है।अपनी सोच को सकारात्मक रखते हुये हमे समय प्रबन्ध(टाइम मैनेजमेंट)करना चाहिये,दुनिया में यदि सबसे कीमती कोई चीज है तो वो है समय जो गुजरने के बाद वापस नही आता,रूपये-पैसे तो उधार भी मिल जाते है पर समय कोई नही लोटा सकता,हमारा बचपन गुजर गया,जो कोई नही लोटा सकता,हमारे पीछे रहने का सबसे बड़ा कारण यह भी है की हम समय को व्यर्थ गवांते है।महापुरषो की जीवनियां इसी लिए पढने को कहते है की उनसे हमे प्रेरणा मिले,विवेकानन्द जी ने तो अल्पायु में ही पुरे विश्व में अपने ज्ञान प्रकाश फैलाया,हम क्या कर रहे है यह सोचने की बात है।हमे आत्मवलोकन करना चाहिये,आज तक हमने क्या खोया,क्या पाया?जो कुछ खोया उसके क्या कारण रहे,क्या हम अभी भी उसी मार्ग पर अग्रसर है?मनन करने से हमे अपनी गलतियों का पता चल जायेगा,रूकावट कहा है वो भी जानकारी में आ जायेगा।आजकल अधिकांश विधार्थियो की यही शिकायत रहती है की पढ़ा लिखा याद नही रहता,एक बात तो यह है की आजकल लिखने की आदत कम होती जा रही है जो बात हम लिखते है वो अच्छी तरह याद हो जाती है।पहले स्कूलो में हस्तलेख में सुधार के लिए सुलेख लिखवाते थे,स्पेलिग मिस्टेक सुधार के लिए श्रुतिलेख और यादाश्त बढ़ाने के लिए अनुलेख लिखवाये जाते थे,अब बस्ते का बोझ तो दस गुणा बढ़ गया पर अध्ययन में पहले जैसी गंभीरता नही रही।आजकल के विधार्थीयो का मन टीवी,मोबाईल,विडियोगेम में ज्यादा रहता है,मष्तिष्क में तरह तरह के विचार रहते है,दिमाग की मेमोरी फूल हो जाने पर पढ़ा हुवा किस प्रकार अच्छी तरह याद रहेगा।आजकल शारिरिक श्रम भी बहुत कम करते है।जो मेहनत करता है उसको खाना भी अच्छी तरह भाता है,पचता भी सही तरह से है और नींद भी अच्छी आती है।
     मित्रो,लिखने को तो बहुत कुछ है पर आज के लिए बस इतना ही।आप भी अपने विचार व्यक्त करें।मात्र यह लिख देने से की बहुत अच्छा लिखा,विचारो का आदान प्रदान नही होता।

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