एक सफ़र लोको पायलट और सहायक पायलट का

क्या आप जानते हैं कि ट्रेन सिर्फ एक नहीं, दो लोग
 चलाते हैं — एक लोको पायलट और दूसरा सहायक लोकोपायलट। एक का हाथ कंट्रोल में होता है, तो दूसरे की नज़र पटरियों पर। एक की आंखें सिग्नलों पर टिकी होती हैं, तो दूसरा उसकी थकान का साथी बनता है।

ये रिश्ता सिर्फ ड्यूटी का नहीं बल्कि भरोसे एवं समर्पण का होता है। जब आपके सफ़र का साथी जो काम में तेज़, स्वभाव में सौम्य और मुस्कान में सच्चा हो, तब सफर बोझ नहीं, बल्कि सुकून बन जाता है।

कई बार रास्ते लंबे होते हैं, रातें सुनसान होती हैं, ठंडी हवाएं खिड़की से टकरा रही होती हैं — नजरें पटरी और सिग्नल पर टिकी होती है बस पड़ोस की सीट पर बैठे इंसान की तरफ आप देख भी नहीं रहे होते हो फिर भी बस एहसास से ही वार्तालाप होता है । जैसे ही ट्रेन रुके वो एक प्याला चाय के लिए हामी भर दें , या बिना कहे ही आंखों से सब कुछ कह दें, यही वो छोटी-छोटी बातें होती हैं जो इस रिश्ते को मशीन से इंसान तक ले जाती हैं।

इंजन में दो लोग होते हैं, पर वो मिलकर एक परिवार की तरह काम करते हैं —
जहाँ जिम्मेदारी भी साझा होती है, और मुस्कान भी ☺️

📸✍️ RailPilot की कलम से 🙏

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