एक लोको पायलट की आत्म कथा ☺️
कहां हैं गाड़ी 😀
एक ड्राइवर की आत्मकथा
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जब ट्रेन की चर्चा होती है तो इंसान के जेहन मे एक नाम उभरकर आता है और वह नाम है ड्राइवर। भारत जैसे बेरोजगार प्रधान देश मे ज्यादातर नवयुवक रेलवे की नौकरी पसंद करते है। राजीव देसाई एक जवान युवक हैं जब स्टेशन पर जाता है, और एक लंबी ट्रेन को देखता है तो सोचता है 'काश मैं इसे चला पाता' फिर शुरू होता है एक सपना जो खत्म होता है एक रेलवे के एसिस्टेंट ड्राइवर के रूप मे। करोड़ों प्रतियोगी को पछार कर बनता है एक रेलवे कर्मचारी। ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट से शुरू होती है रेलवे की तालीम। सहायक ड्राइवर बनने के बाद उसके गांव और रिस्तेदारो मे उसका कद हिमगीरी ट्रेन जैसा लंबा हो जाता है और सपने हिंद महासागर जैसे बड़े। उसे नही पता की उसका सपना अब सपना ही रह जाने वाला है। ट्रेंनिंग खत्म कर और कुछ औपचारिकता के बाद कंधे पर बैग और हाथ मे पानी का एक बड़ा बोटल लिए शुरू करता है उसका सेंकेड पारी। ट्रेनिंग स्कूल की पढाई जो क्लास रूम के टेबल कुर्सी ने ही आधी सोख ली हैं, और वास्तविकता के धरातल पर एक अलग लेवल की ट्रेनिंग इंजन के कैब से शुरू हो जाती हैं। जवानी के जोश और देशभक्ती से लैस कैब से सिगनल का सही पोजिशन को मेन ड्राइवर को बोलता हुआ नजर सामने रखता हुआ आगे बढ़ता जाता हैं। जब ट्रेन गांव फिर जंगल फिर घाटी के रास्तो से गुजरती है और ट्रेन की हार्न की आवाज़ सुनकर निर्जन घाटी से गुजरती या खेत खलियानो मे काम करती जवान छोरियां (लड़कियां) ट्रेन की तरफ देखती और हाथ हिलाते हुए टाटा का इशारा करती तो सहायक ड्राइवर के निर्जन फुलो के बाग मे एक मथम सी हवा का झोका हिलोरे मारते हुए बह उठता हैं साथ मे वह भी छोरियों को टाटा का इशारा करता। इशारो का काम समाप्त नही होता कि मेन ड्राइवर सामने देखने को बोलता है। चार-पांच महीना टाटा-वाये करते हुए बीता देता है फिर उसे समझ आता कि आख़िरकार लड़कियां, औरते, और कुछ पुरूष उन्हे हमेशा टाटा का इशारा क्यों करता है? टाटा का अर्थ राजीव को समझ आता है कि 'उसे हमेशा इंजन में भागना ही पडेगा।' नौकरी के दो साल गुजर जाने के बाद राजीव के घरवाले अपने ड्राइवर बेटे के लिए बहु तलाश करने लगते है। कुछ सहायक ड्राइवर तो अपना गर्लफ्रेंड भी खोज लेता है पर गर्लफ्रेंड से भी ठीक तरह से बात संभव नही हो पाता जिसके कारण अक्सर दोनों मे प्यार की बाते कम लड़ाई ज्यादा हो जाता है, क्योंकि लड़का या तो ट्रेन के इंजन मे होता है या रनिंग रूम मे सोया रहता है। पर होशियार गर्लफ्रेंड अपने प्रियतम का साथ नही छोड़ती। कुछ गर्लफ्रेंड टिक जाती है तो कुछ छूट जाती है। घरवालो की मर्जी से जिनका ब्याह ठीक होता है वह किसी तरह अपने होनेवाली पत्नी का नंबर जुगार कर लेता है और खाली समय में प्यार की बातों के साथ-साथ अपने होनेवाली पत्नी को नये-नये सपनो दिखया करता है। जब होनी वाली जोरु कहती है कि 'लोग कहते हैं कि ड्राइवर की नौकरी में समय का कोई ठिकाना नही है' तो वह कहता है 'अरे मै ट्रेन लेकर सुबह जाऊंगा और शाम को तुम्हारे पास मेरी जान।' पर लड़की बोलती है 'मैने सुना है कि ड्राइवर कभी-कभी एक-दो दिन बाद घर पहुंचता है' इसके जबाव मे ड्राइवर कहता है 'जो तुमको ऐसा कहता है उसे नही पता। मैंने तो अपने ऑफिस मे सबको पटियाके रखा है, मुझे सिर्फ दिन मे ही ड्यूटी मिलती है 150 किमी तो जाता हूं, फिर तुम्हारे पास ओ मेरी रानी। तुम सिर्फ इतना याद रखो कि तुम मेरी रानी और मै तेरा राजा हम दोनो मिलकर बजाऐंगे रात को बाजा।' यह बात कितना सच और कितना झूठ यह सिर्फ वह ड्राइवर जानता हैं। इस तरह की बातों का सफ़र शादी तक चलता रहता है। राजीव भी अपनी होनेवाली पत्नी से ऐसी ही झूठ-सच बोलता हैं। अब राजीव सहायक ड्राइवर से ड्राइवर बन जाता है अब जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाता है। सुहागरात मे पत्नी को और भी ज्यादा सपना दिखाते हुए कहता है 'कमआन डार्लिग आओ मेरे पास और समा जाओ मुझमे।'
ट्रेन का पहिया घुमता है और फोने की धंटी भी बजता है और शादी के बाद पहला ड्यूटी के लिए तैयार होता है, नई नवेली दुल्हन रुक्मिणी अपने पति के लिए पौष्टिक आहार बनाने मे व्यस्त हो जाती है और टिफिन मे खाना भरकर पति को देती है। घर से निकलते समय राजीव रुक्मिणी के गालो का चुबंन करता है और गले लगा लेता है। रुक्मिणी फिर बोलती है 'कब तक आओगे।' राजीव बोलता है 'यही कहीं शाम सात बजे के करीब आ जाऊंगा।' रुक्मिणी साढ़े छ: बजे फोन लगाती है 'कहा हो?' राजीव उत्तर देता है 'तुम चिंता मत करो आ रहा हूं आठ बजे तक पहुंच जाऊंगा।' रुक्मिणी आठ बजे फिर फोन करती है 'कहा हो जानु?' दूसरी तरफ से उत्तर आता है 'कुछ ही दूरी पर हुं, दस बजे तक आ जाऊंगा।' जब दस बजे तक भी नही आता तो फिर फोन करती है 'कब तो आओगे?' राजीव उत्तर देता हैं 'अच्छा तुम एक काम करो, तुम खाना खा लो मै लॉबी पहुंचने पर तुमको कॉल कर दुंगा।' रुक्मिणी कुछ देर इंतजार करती फिर खाने को फ्रिज मे रख देती है। रुक्मिणी बार-बार मोबाईल की तरफ देखती रहती की कॉल तो नही आया। इंतजार करते-करते उसकी आंख कब लग जाती है उसे खुद होश नही रहता। रात एक बजे के करीब मोबाईल की घंटी बजती है। राजीव मुंह लटकाया हुआ और कुछ बहाने बनाता हुआ अंदर आता है। फ्रेश होने के बाद और डिनर करने के बाद बेड पर और भी बहाने बनाता है फिर बोलता है 'छोड़ो ड्यूटी की बाते, कमआन डार्लिंग आओ हम प्यार करे।' पत्नी बाहों मे समेटती हुई कहती है 'कुछ दिन बाद होली है और मै चाहती हुं कि हमारी शादी के बाद की पहली होली में तुम घर पर ही रहो और हम होली को यादगार बनाये।' राजीव अविश्वास भरे शब्दो मे कहता है 'हां रहूंगा। होली के दस दिन पहले ही छूट्टी की अर्जी दे दूंगा' पर छूट्टी होली के एक दिन पहले तक स्वीकार नहीं हुआ, फिर वह अपने बड़ा बाबु को कॉल करता है और जैसे ही पता चलता है की उसका छूट्टी स्वीकार कर लिया गया वह इस कदर खुशी से उछल पड़ता है जैसे कि मैट्रीक की परीक्षा मे फेल होते हुए बच गया हो। सुबह पत्नी को पीछे से पकड़ता हुआ मस्ती मे गाने शुरू कर देता है 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे।' पत्नी भी कम खुश नही थी वह भी गाने शुरू कर देती है 'होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुना दे जरा बांसुरी।' होली के रंग लगाने का नशा बाथरूम मे जाकर खत्म होती है क्योंकि दोनो ने एक-दूसरे पर अत्यधिक रंग उरेला था।
ट्रेन का पहीया फिर से घूमा और इस बार पहले से थोड़ी तेज रफ्तार मे घूमा। राजीव की मां बोलती है बेटा तु छूट्टी ले ले, बहु की तबीयत कभी भी बिगड़ सकती है। इसपर राजीव बोलता है 'मां डेट अभी दूर है। मै डेट से पांच दिन पहले छूट्टी ले लुगा।' इतना बोलकर वह ड्यूटी चला जाता है। आजकल राजीव ब्रांच लाइन मे ट्रेन ले जाता है जहां ना तो सवारी गाड़ी मिलती है और ना ही कोई मेल, एक्स क्योंकि वह एक लोडिंग सेक्शन है। ट्रेन लोडिंग पोइंट तक पहुंचाकर वह रनिंग रूम मे आराम करता है। रात को करीब ग्यारह बजे मां का फोन आता है 'बहु का तबीयत बिगड़ गयी है और हम उसे हॉस्पीटल ले जा रहे है तुम जितनी जल्दी हो सके घर आ जाओ।' राजीव किसी तरह अपनी समस्या बताकर कंट्रोलर के द्वारा रिलिफ हो जाता है, पर उस समय वहां से घर तक आने के लिए ना ही कोई गाड़ी है और ना ही कोई अन्य साधन। यहां तक की कोई गुड्स ट्रेन जिसपर बैठकर वह घर आ सकता था वह भी नहीं था। उसकी वेदना समझने वाला कोई नही था अपने आंसूओं के घूंट को पीते-पीते सुबह कर दिया। उसे पता चला कि एक गाड़ी लोडिंग हुई और उसपर वह अपने हेडक्वार्टर होता हुआ हॉस्पीटल पहुंचता है। हॉस्पीटल मे पहुंचते ही उसे पता चलता है कि वह पिता बन चुका है जब वह अपनी बच्ची के कोमल नयनो को देखा तो शायद नन्ही बच्ची की नयन कह रही हो 'पापा तुम क्या नही आए?' अपनी बच्ची को सीने से लगाकर और एक हाथ अपने पत्नी के हाथो के ऊपर रखकर राजीव रोता रहा।
पत्नी अब तक समझ चुकी थी कि उसकी जिंदगी भी अब एक ड्राइवर की तरह हो चुकी है ना सोने का कोई समय और ना उठने का खाना खाने का कोई निश्चित समय है, और अब इस तरह ही जिंदगी उसे भी जीना है। अब ना कोई आशा था और ना ही कोई जिज्ञासा।
ट्रेन का पहिया फिर रफ्तार से घुमा और बच्ची देखते ही देखते पांच साल की हो गई। आज दिवाली का त्योहार हैं और सुबह चार बजे मोबाईल घंटी बजा। वह उठा और तैयार होने लगा, पत्नी खाना बनाने लगी। घर से निकलते समय बच्ची दौड़ी-दौड़ी आई और पापा के सीने से लगती हुई बोली 'पापा आज मत जाओ रात को हम पटाखे फोरेंगे।' राजीव बच्ची को प्यार करते हुए बोलता है 'मै यूं गया और यूं आया। रात को साथ में बहुत सारे पटाखे फोरेंगे।' रुक्मिणी यह सुनकर रोती हुई अंदर चली गई। बच्ची को विश्वास हो जाता है कि पापा आएंगे और पापा को टाटा करते हुए विदा की। राजीव लॉबी पहुंचता है और रोस्टर से मेन लाइन की गाड़ी का डिमांड करता है, क्योंकि त्योहार में ड्राइवर की कमी हो सकती है तो बहुत संभव उसे राउंड ट्रिप मिल सकता है। वह गाडी को पहुंचाकर राउंड ट्रिप कर घर लौट सकता था। गाड़ी स्टार्ट होता है और जिस-जिस स्टेशन पर गाड़ी मेल, एक्स पास करने के लिए खड़ा होता है तो राजीव स्टेशन मास्टर के द्वारा कंट्रोलर को सुचना दिवाता है कि 'वह राउंड ट्रिप मे डाउन की ट्रेन लाने को तैयार है क्योंकि उसे अपनी बच्ची के साथ दिवाली मनाना है।' कंट्रोलर मान जाता है पर मसला यह है कि राजीव की गाड़ी कब तक वहां पहुचेगी जहा से उसे राउंड ट्रिप करनी है। उसकी गाड़ी तो मेल, एक्स के लिए प्रत्येक स्टेशन पर खड़ी हो रही थी। जब गाडी स्टार्ट होता तो उसमे एक खुशी की लहर दौड़ पड़ती थी, पर खुशी दो स्टेशन पर जाकर रूक जाती। किसी तरह उसकी गाड़ी शाम चार बजे गंत्वय पहुंचती है। कंट्रोलर उसे दूसरी डाउन मालगाड़ी पर चार्ज लेने बोलता है। राजीव जैसा चाह रहा था वैसा ही हो रहा था। राजीव हिसाब लगाता है कि अगर गाड़ी थ्रु ले जाऐगा तो 2 घंटे मे घर अपने बच्ची के पास। सोचते-सोचते वह गंभीर हो जाता है क्योंकि उसके गाड़ी के आगे भी बहुत सी गाड़ी है। राजीव कि गाड़ी शाम पांच बजे स्टार्ट होता है और फिर दो स्टेशन आगे जाकर रूक जाती है। एक एक्स जाने के बाद फिर 6 बजे स्टार्ट होता है इस बार गाड़ी तीन स्टेशन बढ़ जाता है और फिर रूक जाती है। अब तक सात बज चुके है। घर मे बच्ची पटाखे हाथ मे लिए पापा के आने का इंतजार करती है और बार-बार मां से पुछती है 'पापा कब आऐंगे।' मां बोलती कुछ देर बाद आ जाऐंगे। फिर बच्ची गेट के सामने खड़ी होकर रास्ते के तरफ देखती हुई फिर दौडी अंदर आती है और दादी से कहती है 'पापा तो नही आ रहे है सबके पापा आ गये।' अब तक रात के नौ बज चुके है और उसकी गाड़ी मिड सेक्शन के किसी स्टेशन पर सिगनल ग्रिन होने का इंतजार कर रहा है। फिर गाड़ी स्टार्ट होती तो और तीन स्टेशन थ्रु जाती है उसे विश्वास हो गया कि अब गाड़ी थ्रु जाऐगी, अपनी गंण्तव के दो स्टेशन पीछे उसकी गाडी लुप लाइन मे ले ली जाती है क्योंकि राजधानी एक्स का समय हो गया है। अब तक रात के ग्यारह बज चुके है बच्ची इंतजार करते-करते हाथ में पटाखे लेकर सोफे पर सो गयी। उसकी गाड़ी गंण्तव तक रात के 1 बजे पहुंचती है किसी तरह अपनी बाइक स्टार्ट कर घर पहुंचता है पर दिवाली के पटाखो के गुंज शांत हो चुका है। राजीव कमरे मे घुसता है अपनी बच्ची को देखता रहता है और उसके माथे पर हाथ रखकर सहलाता है। पत्नी कहती है 'आपका इंतजार करते-करते सो गयी है।' वह बच्ची को उठाने की कोशिश करता है पर बच्ची एक बार आंख खोलती है और बोलती है 'पापा तुम आ गए' फिर सो जाती है। वह अपनी बच्ची के हाथो से पटाखे निकाल लेता है और रख देता है।
ट्रेन का पहिया पुरी रफ्तार के साथ घूमता है और अब वह पैसेंजर ड्राइवर बन जाता है बेटी बड़ी हो गई और शादी भी गयी। बेटा भी 20 साल का हो गया। फिर कुछ सालो बाद एक लास्ट घंटी बजती है आज रिटायरमेंट का समय है बेटे का शादी कुछ दिन पहले ही हुआ। पुरा परिवार रिटायरमेंट के दिन ऑफिस पहुंचता है ऑफिस वाले एक अटैची और एक शाल गिफ्ट करता है जिसका मतलब है 'अपना समान अब इस अटैची मे भरो और शाल ओठकर सो जाओ।' घर मे बेचारे का मन नही लगता लागातार 35 साल ट्रेन का इंजन चलाते-चलाते उसके शरीर का इंजन भी अब जबाब दे रहा था। आंखों की रोशनी तो पहले की खत्म हो गया था अब चलने के लिए बेटे ने एक लाठी का व्यवस्था कर दिया। ट्रेन से लगाव होने के कारण अक्सर शाम को स्टेशन पहुंच जाता था और लॉबी के सामने बैठकर ड्राइवर को इंजन मे चार्ज लेते हुए देखता रहता था। कभी-कभी वह अपने लाठी से उन नये ड्राइवरों को इशारा करता था यह जताने के लिए कि मै भी कभी ड्राइवर था पर उसकी तरफ कोई नही देखता था। वह चाहता था कि उन ड्राइवरों को चिल्लाकर कुछ कहे पर उसके ज़ुबान के इंजन की सीटी मे अब वह जोर नही था। एक दिन वह देखता है कि स्टेशन परिसर मे एक पुराना स्टीम इंजन को रंग कर और फुलो की माला चढ़ाते हुए स्थापित किया जा रहा है। यह देख वह घर आता है और अपने मेहनत की कमाई से बनाए घर के दरवाज़े से अंदर घुसता हुआ उपर सामने के तरफ देखता है जहां कुछ दिनो बाद उसकी माला चढ़ी फोटो टंगने वाला था। अपने बिछावन पर जाकर लेट जाता है आंखें बंद करता है और अपने ज्वानिंग से लेकर अब तक के सफर को याद करता है। राजीव पहले जैसा जवान होना चाहता था और फिर से इंजन को चलाना चाहता है। चलते ट्रेन के इंजन से लड़कियों को देखकर टाटा करना चाहता है। अपनी पत्नी को 'कमआन डार्लिंग आओ मेरी बाहों मे और समा जाओ' कहना चाहता था। यह सब सोचते-सोचते हमेशा के लिए अंधकार मे वह समा गया।
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