1965 युद्ध मे भारतीय रेल कर्मियों का गौरवशाली यौगदान की कहानी

रेल कर्मियों का अद्मय साहस की कहानी ✍️✍️

गडरारोड में शहीद मेले का आयोजन कल :-
भारत-पाक युद्ध 1965
टैंकों की गर्जना, लड़ाकू विमानों की बमबारी, चारों ओर गोलियों की बौछारें और सैनिकों की रेलमपेल का यह दृश्य रोंगटे खडे़ करने वाला था।ऐसे में वीर सपूतों का हौंसला दुगुना हो गया था। क्षतिग्रस्त रेल लाइन की मरम्मत करने की समस्या आई तो कई रेल कर्मचारी स्वेच्छा से आगे आए। सेना के लिए रसद व सैन्य सामग्री पहुंचाने  के लिए व पटरियां ठीक करने में ये रेलकर्मी ना होते तो सेना को काफी मुश्किल होती ।इनमें 17 रेल कर्मचारी शहीद हुए ।
भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने कच्छ के नगर पार इलो पर अपना दावा पेश किया, बदले में भारत ने पाक सेना को खदेड़ने तथा बाड़मेर से पाक कूच करने के लिए सिन्ध से मोर्चा खोलने के आदेश दिए । विकट परिस्थितियों में सैनिकों ने बहादुरी का परिचय देते हुए गडरासिटी में तिरंगा फहरा दिया । भारतीय सेना की इस कार्यवाही से हतप्रभ पाकिस्तान ने भविष्य के संदर्भ में आकलन कर गडरारोड कस्बे की रेललाइन को बम वर्षा से क्षतिग्रस्त कर  दिया । इसके परिणामस्वरूप अग्रिम मोर्चो पर डटी भारतीय सेना के लिए आवश्यक वस्तुओं और सैन्य सामग्री का संकट खडा हो गया ।हमारे शूरवीरों का मनोबल बनाये रखने और युद्ध को जीतने के लिए गडरारोड की रेलवे लाईन अर्थात् जीवन रेखा को दुरुस्त करने की आवश्यकता को प्राथमिकता दी गई । देश पर मर मिटने का यह सुनहरा अवसर पाकर रेलवे कर्मचारी तत्काल रेल लाईन को ठीक करने के लिए आगे आए । हवाई हमलों  एवं गोलाबारी के सिहरन भरे माहौल में काम पर जुट गए । पाकिस्तान को अपने घुसपैठिए से रेल लाईन ठीक करने की सूचना मिल चुकी थी । भारत के लिए यह जीवन रेखा  पाकिस्तान  के लिए मृत्यु  रेखा साबित  होगी  यह सोचकर  पाकिस्तान ने निशाना बनाने का आदेश  दिया । उधर हवाई हमलों से बेखबर रेलकर्मियो  ने तेजी से कार्य करते हुए रेल लाइन को ठीक कर दिया । जब ये रेल कर्मचारी काम खत्म करके रवाना हो रहे थे, इस दौरान पाक के विमानों ने बमबारी शुरु कर दी । इस अप्रत्याशित हमलें में  14 बहादुर कर्मचारी मातृभूमि की वेदी पर बलिदान हो गए ।
इस दौरान सैनिकों को खाद्य साम्रगी एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने के लिए रेल ले जाना अत्यावश्यक था । ऐसे माहौल में वीर सपूत चालक चुनीलाल पंवार, फायरमैन  चिमनसिंह व माधोसिंह  ने  देश सेवा का बीड़ा उठाया । ये सीमा पर रेल के जरिए सामग्री पहुंचाने के लिए स्वेच्छा से आगे आए । जब ये गडरारोड पहुंचने के बाद वापिस बाड़मेर के लिए रवाना हुए तब दुश्मन ने चालबाज़ी से संचार व्यवस्था काट दी । पाकिस्तानी घुसपैठिए के गलत सिग्नल देने के कारण बाडमेर की तरफ से आ रही मालगाड़ी से गडरारोड से वापिस आ रहा इंजन टकरा गया । इसमें सवार तीनों रेल कर्मचारी देश की खातिर शहीद हो गए । रेल लाइन के साफ हो जाने के बाद सेना के  आयुध एवं आवश्यक सामग्री गडरारोड स्टेशन पहुंची तो  शहीद रेलवे कर्मचारियों की निष्ठा व बलिदान को याद कर सैन्य अधिकारियों के गले रुंध गये । भारत माता व अमर शहीदों के जयकारों से गडरारोड स्टेशन गूंज उठा । गैर सैनिकों की कुर्बानी की खबर जब मोर्चे पर डटे सैनिकों को मिली तो वे दुगुने जोश से दुश्मनों पर टूट पडे ।
रेलवे विभाग ने इन 17 रेल शहीदों की याद में प्रतिवर्ष शहीद मेला मनाने का निर्णय लिया । इसके अलावा गडरारोड से बाड़मेर की ओर करीब आधा-आधा किमी की दूरी पर स्थित दो शहीद घटनास्थलों पर रेलवे लाइन के पास स्मारक बनाने का निर्णय लिया । तब से प्रतिवर्ष इन शहादत स्थलों पर हजारों लोग एकत्रित होकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं । गडरारोड स्टेशन भवन की दीवार पर संगमरमर के शिलाखंड पर भी इन 17 अमर शहीदों के नामपट्ट स्थापित हैं ।
इन शहीदों का बलिदान चिरस्मरणीय रहेगा ।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा ।

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