एक गांव .......✓

घाटवा ग्राम पंचायत : शौर्य, आस्था और विकास का एक जीवंत संगम, स्वतंत्रता सेनानी नाथूराम गुर्जर की अमर गाथा के साथ*

घाटवा, डीडवाना-कुचामन | राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में, डीडवाना-कुचामन जिले का घाटवा कस्बा केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि अपने शौर्यपूर्ण इतिहास, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और निरंतर प्रगति के लिए जाना जाता है। डीडवाना जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर स्टेट हाईवे-8-ए पर स्थित यह जीवंत गांव, 10,222 से अधिक की आबादी (जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है, केंद्र सरकार की ई-ग्राम वेबसाइट के अनुसार) और 80% से अधिक साक्षरता दर के साथ, शिक्षा, सेवा और सशक्त नेतृत्व का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है। घाटवा ग्राम पंचायत के अंतर्गत की राजस्व ग्राम रिक्शा की ढाणी, मानजी की ढाणी, श्याम नगर व गांधीग्राम भी आते हैं।
          घाटवा का इतिहास सदियों पुराना है, जिसकी जड़ें पवार राजपूतों के काल तक जाती हैं। माना जाता है कि गांव का नाम प्राचीन घटवासन माता मंदिर के नाम पर पड़ा है। किवदंतियों के अनुसार, पवारों से पहले यहां परमार और फिर दहिया राजपूतों का शासन था। घटवासन माता मंदिर में मौजूद प्राचीन शिलालेख, जो अब अपठनीय हैं, गांव की सदियों पुरानी विरासत की गवाही देते हैं। जोधपुर के उम्मेद पैलेस के म्यूजियम  में रखे मारवाड़ के मूल नक्शे में भी घाटवा का नाम एक महत्वपूर्ण 'चुंगी चौकी' के रूप में अंकित है। घाटवा और मारोठ को अति प्राचीन गांव माना जाता है, जिनकी बसावट मारवाड़ में लगभग 800 साल पुराना बनाता है। घाटवा में सदियों से निकलने वाली गणगौर सवारी भी इसकी प्राचीन स्थापना का एक महत्वपूर्ण इतिहास बताती है। माधोगढ़ डूंगर का गौड़ शासकों से गहरा संबंध रहा है। यहां एक ऐतिहासिक छतरी बनी हुई है, जो इस बात की गवाही देती है कि संवत् 1545 विक्रम की वैशाख अक्षय तृतीया को खुंट्या तालाब के पास गौड़ों और महाराव शेखाजी के बीच एक भीषण युद्ध हुआ था। महाराव शेखाजी ने एक स्त्री के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया और नारी का मान मर्दन करने वाले गौड़ राजपूतों का इस क्षेत्र से विनाश किया। आज भी घाटवा को बोलचाल की भाषा में 'गौड़ों वाला' कहा जाता है, भले ही अब इस क्षेत्र में एक भी गौड़ परिवार निवास नहीं करता है।
         घाटवा सिर्फ युद्धों की धरती नहीं, बल्कि गहरी आस्था का केंद्र भी है। यहां कई अति प्राचीन मंदिर हैं जो गांव की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। देव नारायण मंदिर, घटवासन माता मंदिर और बाड़ा जी का मंदिर इनमें प्रमुख हैं। बाड़ा जी का मंदिर नागा साधुओं का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। बाढ़ के बालाजी मंदिर की गहरी आस्था और रामलीला मैदान में होने वाले सांस्कृतिक आयोजन गांव के सामुदायिक जीवन का अभिन्न अंग हैं। माधोगढ़ डूंगर पर स्थित श्री घाटवेश्वर महादेव मंदिर एक जीवंत आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र है। राजस्थान सरकार ने हाल ही में इसे धार्मिक पर्यटन स्थल घोषित किया है। पूरे सावन माह में काले-स्याह संगमरमर से बनी महादेव की प्रतिमा का श्रद्धापूर्वक जलाभिषेक किया जाता है, और हरियाली अमावस्या पर यहां एक भव्य मेले का आयोजन होता है, जो आसपास के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। माधोगढ़ डूंगर अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से भी मन मोह लेता है, जहां ग्रामीणों के प्रयासों से डेढ़ सौ से अधिक प्रजातियों के फलदार, छायादार और औषधीय पौधे लगाए गए हैं। यह स्थल एक उत्कृष्ट सनसेट प्वाइंट के रूप में भी जाना जाता है।
          घाटवा का इतिहास केवल युद्ध और आध्यात्मिकता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अपने पारंपरिक आर्थिक रोजगार के लिए भी जाना जाता है। लुहार जाति द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध फावड़े यहां की एक प्रमुख पहचान थे, जिनकी दूर-दूर तक मांग थी। इसके अतिरिक्त, मिर्च का व्यापार भी गांव की आर्थिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जो इसकी पारंपरिक उद्योगों की विरासत को दर्शाता है। आज भी, रेगर समुदाय बैंक की सहायता से पंजाबी जूती का कारोबार बढ़ा रहा है, और लोहार जाति के लोग फावड़े बनाते हैं जो पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं, जिससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार आ रहा है। सुलियावास, मुंडियावास, लालास और अडकसर जैसे आस-पास के गांवों के लोग भी खरीद-फरोख्त और कामकाज के लिए घाटवा आते रहते हैं। गांव के विकास में सेठ कन्हैयालाल उदानी का योगदान अविस्मरणीय है, जिन्होंने अपनी कोलकाता की कमाई का ₹30 लाख से अधिक हिस्सा घाटवा की सार्वजनिक संस्थाओं पर खर्च किया है। उन्होंने राजकीय माध्यमिक शाला (अब सीनियर स्कूल), अस्पताल और गौशाला का निर्माण कराया है।
           घाटवा के पहले सरपंच, स्वर्गीय श्री घीसालाल कामदार, ने गांव के विकास में मील का पत्थर स्थापित किया। 1952 में देश के पहले पंचायत चुनावों में विजयी होकर, उन्होंने लगभग 28 वर्षों तक सरपंच और कुचामन सिटी पंचायत समिति के प्रधान के रूप में कार्य किया। उनके कार्यकाल में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए घर-घर चरखा पहुंचाया गया, भूमिहीनों को काश्त के लिए भूमि और मकान के भूखंड आवंटित किए गए, तथा 1964 में घाटवा में सेकेंडरी स्कूल खुलवाई। 1958 में उन्होंने पोस्ट ऑफिस में टेलीफोन लगवाया और सीकर-दांता रोड को घाटवा होकर निकलवाया। उनके प्रयासों से गांव में पीने के पानी के लिए कुएं बनवाए गए और खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से सहायता दिलाकर रैगर समाज को दुकानें बनवाईं, जो आज एक भव्य मार्केट का रूप ले चुकी हैं। उन्होंने पुराने पंचायत भवन को भी कब्ज़ा मुक्त करवाकर पंचायत कार्यालय के लिए उपयोग में लाया। घाटवा के एक अन्य महान सपूत, स्वर्गीय मुरलीमनोहर पारीक, जिन्हें 'घाटवा के भगीरथ' के नाम से जाना जाता है, ने भी गांव के विकास में अमूल्य योगदान दिया। 1986 में उन्होंने घाटवा की पेयजल समस्या के निराकरण के लिए 9 दिनों का आमरण अनशन किया, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार को झुकना पड़ा और घाटवा में 9 नए ट्यूबवेल, स्टोरेज टैंक और ओवरहेड टंकियां बनवाई गईं।
         स्वतंत्रता संग्राम में, घाटवा के स्वर्गीय श्री नाथूराम गुर्जर और गुलाब सिंह जैसे वीर सपूतों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री नाथूराम गुर्जर सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज में रहते हुए अंग्रेजों से लड़े और देश की स्वतंत्रता के लिए कष्ट झेले। भारत सरकार द्वारा उन्हें और गुलाब सिंह को ताम्रपत्र और स्वतंत्रता सेनानियों वाली पेंशन दी गई है। गांव के लोग आज भी इन दोनों के माध्यम से आज़ाद हिंद फौज और सुभाष चंद्र बोस के संबंध में आंखों देखा विवरण सुनाते हैं, जो उनकी शौर्य गाथा का प्रमाण है। आज घाटवा शिक्षा और विकास के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। गांव के प्रतिभाशाली वकील, अध्यापक, इंजीनियर, डॉक्टर, सैनिक और अन्य उच्च पदों पर कार्यरत हैं, जो गांव की प्रतिभा का प्रमाण हैं। हाल ही में आईएएस बनकर गांव का नाम रोशन करने वाले युवा जितेन्द्र कुमावत और नीट में सफल होने वाली छात्रा काजल सैनी इसकी नवीनतम मिसाल हैं। गांव में 40 के करीब व्यक्ति पुलिस में सेवारत हैं और कई अन्य वकील, डॉक्टर, इंजीनियर और अध्यापक बन चुके हैं। वर्तमान में गांव में चिकित्सा के क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण कार्य चल रहा है, जो स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाएगा।
        घाटवा ग्राम पंचायत, अपने समृद्ध इतिहास, जीवंत संस्कृति और निरंतर विकास के प्रयासों के साथ, राजस्थान के गौरव का एक उदाहरण है। यह गांव न केवल अपने अतीत से प्रेरणा लेता है, बल्कि वर्तमान में प्रगति के पथ पर अग्रसर है और भविष्य के लिए एक उज्ज्वल मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
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